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शापित शहर – एपिसोड 11: अंत की ओर

 


पिछले एपिसोड में:

अर्णव और विराट ने खेल के पहले खिलाड़ी आर्यन मेहरा की खोई हुई डायरी खोजी। डायरी के अनुसार, खेल को खत्म करने के लिए खुद को मिटाना होगा।

अब उनके पास सिर्फ़ एक रास्ता बचा था—खेल के केंद्र तक पहुँचना और सच्चाई का सामना करना।

लेकिन सवाल यह था—क्या वे इसे रोकने के लिए खुद को कुर्बान करने को तैयार थे?


अध्याय 1: खेल का केंद्र

अर्णव और विराट डायरी में मिले नक्शे के अनुसार खेल के केंद्र की ओर बढ़ने लगे।

चारों ओर धुंध फैली हुई थी।

जैसे ही वे आगे बढ़े, उन्हें एक विशाल दरवाजा दिखा। इस पर अजीब से निशान बने थे—मानव चेहरों के आकार के।

"ये क्या है?" अर्णव ने दरवाजे को छूते हुए कहा।

तभी, दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया।

अंदर एक गोलाकार कक्ष था।

बीचों-बीच एक टाइमर चल रहा था—00:59… 00:58…

"समय कम है," विराट ने कहा।

"हमें जल्दी करनी होगी," अर्णव ने सिर हिलाया।


अध्याय 2: खेल की आत्मा

जैसे ही वे आगे बढ़े, एक गहरी आवाज़ गूँजी—

"आखिरकार, तुम लोग यहाँ तक पहुँच ही गए।"

अचानक, हवा में एक आकृति बनी—एक काले धुएँ से बनी परछाईं।

"तुम कौन हो?" अर्णव ने पूछा।

"मैं... इस खेल की आत्मा हूँ।"

"आत्मा?" विराट ने हैरानी से दोहराया।

"हाँ," वह हँसी। "तुमने सोचा कि यह सिर्फ़ एक खेल है? नहीं... यह एक ज़िंदा चीज़ है। और यह हमेशा रहेगा।"

"हम इसे खत्म करने आए हैं," अर्णव ने कहा।

परछाईं की हँसी गूँज उठी।

"क्या तुम सच में इसे रोक सकते हो?"


अध्याय 3: बलिदान का सच

विराट ने डायरी को जोर से पकड़ लिया।

"डायरी के मुताबिक, अगर हम खुद को मिटा दें, तो यह खेल खत्म हो सकता है," उसने कहा।

परछाईं ने सिर हिलाया।

"सिर्फ़ एक को मरना होगा... लेकिन सवाल यह है—कौन?"

अर्णव और विराट एक-दूसरे को देखने लगे।

"यह कैसा खेल है?" अर्णव ने गुस्से से कहा।

परछाईं ने कहा, "एक ज़िंदा खेल। और हर ज़िंदा चीज़ को जिंदा रहने के लिए बलिदान चाहिए।"


अध्याय 4: आखिरी फैसला

समय तेज़ी से बीत रहा था।

00:20… 00:19…

"अगर हम दोनों मर गए, तो क्या यह खेल खत्म हो जाएगा?" विराट ने पूछा।

परछाईं चुप रही।

"बोलो!" अर्णव चिल्लाया।

आखिरकार, परछाईं ने जवाब दिया—"शायद।"

अर्णव और विराट ने एक-दूसरे को देखा।

"तुम्हें जाना होगा, विराट," अर्णव ने कहा।

"क्या?"

"तुम बाहर जाओ। मैं इसे खत्म करूँगा।"

"नहीं!" विराट ने सिर हिलाया। "हम दोनों बाहर जाएँगे।"

"अगर हम दोनों बचने की कोशिश करेंगे, तो यह कभी खत्म नहीं होगा," अर्णव ने कहा।

00:05… 00:04…

अचानक, अर्णव ने विराट को धक्का दिया—और खुद खेल के केंद्र में कूद गया।


अध्याय 5: खेल का अंत… या एक नई शुरुआत?

विराट चीख उठा—"अर्णव!"

लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

अर्णव का शरीर रोशनी में बदलने लगा।

परछाईं चीख उठी—"नहीं!"

पूरा कक्ष हिलने लगा। दीवारें टूटने लगीं।

और फिर—एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ।


एपिलॉग: क्या यह सच में खत्म हुआ?

विराट ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं।

वह अब खेल के बाहर था।

"मैं… वापस आ गया?"

उसने चारों ओर देखा। सबकुछ सामान्य लग रहा था।

कोई शापित शहर नहीं था।

कोई खेल नहीं था।

लेकिन… अर्णव कहीं नहीं था।


तभी, हवा में एक हल्की फुसफुसाहट गूँजी—

"क्या तुमने सच में सोचा कि यह खत्म हो गया?"

विराट का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।


(अगला एपिसोड: "एक नई भूलभुलैया")

क्या विराट सच में खेल से बाहर आ चुका है? या यह सिर्फ़ एक नया स्तर है?

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