भूतिया खिलौने की दुकान – भाग 7: श्राप अमर है
भाग 1: एक नई शुरुआत या नई मुसीबत?
माया, आदित्य और रोहन को लगा कि उन्होंने आखिरकार गुड़िया के श्राप से छुटकारा पा लिया है। हवेली अब शांत थी, आत्मा मुक्त हो चुकी थी, और सब कुछ सामान्य लग रहा था।
लेकिन उन्होंने नहीं देखा कि हवेली के कोने में, राख के बीच से वही लकड़ी की गुड़िया धीरे-धीरे उभर रही थी।
अगले दिन, जब माया घर पहुँची, तो उसने अलमारी खोली और सहम गई—गुड़िया फिर से वहाँ रखी थी!
"नहीं... यह असंभव है!" माया ने घबराकर कहा।
भाग 2: श्राप का असली रूप
माया ने तुरंत आदित्य और रोहन को बुलाया।
"हमने इसे नष्ट कर दिया था, फिर यह वापस कैसे आ गई?" आदित्य ने हैरानी से पूछा।
रोहन ने डायरी निकाली और फिर से पढ़ने लगा। अचानक, एक नया संदेश पन्ने पर उभर आया—
"तुम इसे नष्ट नहीं कर सकते। यह श्राप किसी एक आत्मा से जुड़ा नहीं है… यह उन सभी आत्माओं का घर है, जो कभी इसमें समा चुकी हैं!"
"मतलब यह सिर्फ एक आत्मा की कहानी नहीं थी?" माया ने घबराकर पूछा।
"नहीं," रोहन ने कहा। "यह श्राप हजारों साल पुराना हो सकता है। जब भी कोई इसे छूता है, यह उसे अपनी कड़ी में जोड़ लेता है।"
"तो अब क्या करें?" आदित्य ने चिंता से पूछा।
भाग 3: आखिरी रास्ता
डायरी के अनुसार, श्राप को खत्म करने का एक ही तरीका था—गुड़िया को एक ऐसी जगह छोड़ना, जहाँ कोई इंसान दोबारा उसे न छू सके।
"हमें इसे किसी दूर-दराज़ जगह पर ले जाना होगा," रोहन ने कहा।
"पर कहाँ?" माया ने पूछा।
आदित्य ने कुछ देर सोचा और फिर बोला, "शहर से दूर, काले पहाड़ों के पीछे एक पुराना वीरान कुआँ है। कहते हैं, वहाँ जो भी चीज़ गिरती है, वह कभी वापस नहीं आती।"
भाग 4: कुएँ तक का सफर
रात के अंधेरे में, तीनों दोस्त गुड़िया को लेकर उस रहस्यमयी कुएँ की ओर रवाना हुए। रास्ता डरावना और सुनसान था। जंगली जानवरों की आवाजें आ रही थीं, और ठंडी हवा चल रही थी।
जैसे ही वे कुएँ के पास पहुँचे, अचानक सब कुछ शांत हो गया।
"यह जगह अजीब लग रही है," माया ने फुसफुसाते हुए कहा।
भाग 5: श्राप की आखिरी परीक्षा
आदित्य ने धीरे-धीरे गुड़िया को कुएँ के किनारे रखा।
"अब बस इसे नीचे गिरा देते हैं," उसने कहा।
लेकिन जैसे ही उसने गुड़िया को गिराने की कोशिश की, अचानक गुड़िया ने खुद-ब-खुद उसकी कलाई पकड़ ली!
आदित्य की आँखें चौड़ी हो गईं। "यह... यह मेरा हाथ नहीं छोड़ रही!"
गुड़िया की आँखें चमकने लगीं, और अचानक उसकी डरावनी आवाज़ गूँजी—
"तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते!"
भाग 6: आखिरी बलिदान
माया और रोहन ने आदित्य को खींचने की कोशिश की, लेकिन गुड़िया की पकड़ और मजबूत होती गई।
"यह मुझे अंदर खींच रही है!" आदित्य चिल्लाया।
"नहीं, हम तुम्हें ऐसे नहीं जाने देंगे!" रोहन ने कहा।
लेकिन आदित्य ने गहरी सांस ली और मुस्कुराया। "यही एकमात्र तरीका है। अगर मैं इसे लेकर चला जाऊँ, तो यह श्राप खत्म हो सकता है।"
"नहीं!" माया रो पड़ी।
आदित्य ने ज़ोर से धक्का दिया और खुद को कुएँ में गिरा दिया—गुड़िया के साथ!
भाग 7: क्या सच में अंत हो गया?
माया और रोहन ने कुएँ में झाँका, लेकिन अंदर सिर्फ अंधेरा था। कोई आवाज़ नहीं, कोई हलचल नहीं।
सब कुछ पूरी तरह शांत था।
"शायद... यह सच में खत्म हो गया?" रोहन ने धीरे से कहा।
माया की आँखों से आँसू गिरने लगे। उन्होंने अपना सबसे अच्छा दोस्त खो दिया था, लेकिन शायद उसने दुनिया को इस श्राप से बचा लिया।
भाग 8: एक आखिरी डर
दोनों वापस अपने घर लौट आए।
लेकिन जब माया अपने कमरे में पहुँची और दरवाजा बंद किया, तो उसने अलमारी की तरफ देखा...
वहाँ कुछ रखा था।
उसने धीरे-धीरे अलमारी खोली और अंदर झाँका।
अलमारी
के बीचों-बीच, वही लकड़ी की गुड़िया बैठी मुस्कुरा रही थी।
(समाप्त… या फिर से एक नई शुरुआत?) आगे पढ़े
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