बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक गरीब लेकिन ईमानदार लड़का रहता था। उसके माता-पिता खेतों में काम करते थे, और मोहन भी अपने माता-पिता की मदद करता था। वह बहुत मेहनती था और हमेशा सच बोलने में विश्वास रखता था।
ईमानदारी की परीक्षा
एक दिन मोहन गाँव के तालाब के पास लकड़ियाँ इकट्ठा कर रहा था। अचानक उसका कुल्हाड़ी हाथ से फिसलकर पानी में गिर गई। वह बहुत परेशान हो गया क्योंकि कुल्हाड़ी उसके परिवार के लिए बहुत जरूरी थी।
मोहन तालाब के किनारे बैठकर रोने लगा। तभी तालाब से एक देवता प्रकट हुए। उन्होंने पूछा, "बेटा, तुम क्यों रो रहे हो?"
मोहन ने ईमानदारी से उत्तर दिया, "मेरी कुल्हाड़ी पानी में गिर गई है, मैं बिना इसके काम नहीं कर सकता।"
देवता मुस्कुराए और पानी में डुबकी लगाकर एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली। उन्होंने मोहन से पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?"
मोहन ने कुल्हाड़ी को देखा और कहा, "नहीं देवता जी, मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी।"
देवता ने फिर से डुबकी लगाई और एक चाँदी की कुल्हाड़ी निकाली। उन्होंने फिर पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?"
मोहन ने फिर सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं देवता जी, मेरी कुल्हाड़ी साधारण थी।"
ईमानदारी का इनाम
देवता मोहन की ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने पानी में जाकर उसकी असली लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और साथ ही उसे सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी भी इनाम में दी।
मोहन बहुत खुश हुआ और देवता को धन्यवाद देकर घर लौट आया। जब गाँव के लोगों को यह बात पता चली, तो सभी ने उसकी ईमानदारी की सराहना की।
शिक्षा
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ईमानदारी का हमेशा इनाम मिलता है। अगर हम सच्चाई और मेहनत के रास्ते पर चलें, तो जीवन में सफलता जरूर मिलती है। 🌟
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