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भूतिया खिलौने की दुकान – अंतिम अध्याय:

 भूतिया खिलौने की दुकान – अंतिम अध्याय: श्राप का अनंत चक्र


भाग 1: गुड़िया फिर लौट आई


माया की आँखें फटी रह गईं।


वही गुड़िया—जो आदित्य के साथ कुएँ में गिर गई थी—अब उसकी अलमारी में बैठी मुस्कुरा रही थी।


"नहीं... यह असंभव है!" माया ने कांपती आवाज़ में कहा।


उसे अपने कानों में हल्की हंसी सुनाई दी। जैसे कोई फुसफुसा रहा हो—"तुम मुझसे बच नहीं सकतीं..."


भाग 2: श्राप का रहस्य खुला


डरी हुई माया ने रोहन को बुलाया।


"यह फिर वापस आ गई, रोहन!"


रोहन ने घबराकर डायरी निकाली। लेकिन इस बार डायरी के सारे पन्ने कोरे थे। सिर्फ आखिरी पन्ने पर खून से लिखा था—


"श्राप को मिटाया नहीं जा सकता… यह हमेशा किसी न किसी को ढूंढता रहेगा!"


"मतलब... आदित्य का बलिदान भी बेकार गया?" रोहन ने दुखी होकर कहा।


"नहीं, कुछ तो तरीका होगा," माया बोली।


भाग 3: आखिरी कोशिश


माया ने गुड़िया को उठाया और जोर से दीवार पर पटका।


लेकिन वह वैसी की वैसी ही रही—बिना किसी खरोंच के, मुस्कुराती हुई।


"हमें इसे वहीं ले जाना होगा, जहाँ से यह श्राप शुरू हुआ था," रोहन ने कहा।


"मतलब... भूतिया खिलौने की दुकान?" माया कांपते हुए बोली।


भाग 4: दुकान के अंदर


रात के अंधेरे में, वे दोनों दुकान के पुराने खंडहर में पहुँचे। यह अब भी वैसी ही खड़ी थी—उजड़ी हुई, टूटी-फूटी, और डरावनी।


अंदर घुसते ही दरवाजा खुद-ब-खुद बंद हो गया। चारों तरफ अंधेरा था।


"क्या तुम सोच रहे हो जो मैं सोच रही हूँ?" माया ने कहा।


"हाँ... हमें इसे वहीं रखना होगा, जहाँ से यह निकली थी—पुराने शीशे के डिब्बे में!"


भाग 5: श्राप को कैद करना


उन्होंने गुड़िया को पुराने शीशे के डिब्बे में रखा और दरवाजा बंद कर दिया।


अचानक दुकान हिलने लगी। हवा में सरसराहट होने लगी, और खिलौनों से डरावनी आवाजें आने लगीं।


"अब क्या हो रहा है?" माया ने घबराकर पूछा।


तभी दुकान के कोने से एक परछाईं निकली—आदित्य!


"आदित्य?" रोहन चिल्लाया।


"तुम्हें जल्दी यहाँ से निकलना होगा!" आदित्य की आत्मा बोली। "मैं इसे हमेशा के लिए रोकने की कोशिश करूँगा!"


भाग 6: बलिदान का दूसरा अध्याय


"नहीं! हम तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकते!" माया ने रोते हुए कहा।


"मुझे पहले ही चुना जा चुका है," आदित्य की आत्मा बोली। "अगर तुम यहाँ रुके, तो यह तुम्हें भी निगल लेगा!"


दुकान और तेज़ी से हिलने लगी। खिलौने खुद-ब-खुद इधर-उधर गिरने लगे।


"भागो!" आदित्य चिल्लाया।


माया और रोहन दौड़ पड़े। जैसे ही वे बाहर निकले, दुकान ज़ोरदार धमाके के साथ गिरने लगी।


भाग 7: क्या सब खत्म हो गया?


वे दूर खड़े होकर देखते रहे।


धूल और मलबे के बीच, दुकान पूरी तरह तबाह हो चुकी थी।


गुड़िया… हमेशा के लिए दब चुकी थी।


भाग 8: सच्ची मुक्ति?


माया ने गहरी सांस ली। "अब सब खत्म हो गया…"


रोहन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। "हाँ, आदित्य ने हमें बचा लिया।"


वे दोनों चुपचाप वहाँ से निकल गए, अपने दोस्त के बलिदान को याद करते हुए।


भाग 9: लेकिन…


कुछ महीनों बाद, शहर में एक नई खिलौने की दुकान खुली।


एक छोटा बच्चा वहाँ आया और खिलौनों को देखने लगा।


"मम्मी, मुझे यह चाहिए!" उसने एक शीशे के डिब्बे की ओर इशारा किया।


डिब्बे के अंदर एक लकड़ी की गुड़िया मुस्कुरा रही थी।


(समाप्त… या फिर से एक नई शुरुआत?)...... देखते रहिए


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