भाग 1: गुड़िया वापस आ गई!
माया, रोहन और आदित्य घबराकर वहीं रुक गए। गुड़िया को तो उन्होंने मिट्टी में दबा दिया था, फिर यह यहाँ कैसे आई?
"यह... यह असंभव है!" माया फुसफुसाई।
आदित्य ने धीरे-धीरे गुड़िया की ओर कदम बढ़ाए। जैसे ही उसने उसे छूने की कोशिश की, गुड़िया हवा में उठ गई और उसकी आँखें चमकने लगीं।
"तुमने सोचा कि तुम मुझे हरा सकते हो?" गुड़िया की आवाज़ किसी बूढ़े आदमी की तरह गूँजी।
भाग 2: एक और सुराग
रोहन ने तेजी से डायरी निकाली और पन्ने पलटने लगा। तभी उसे एक पेज मिला जो पहले नहीं दिखा था—"गुड़िया तब तक ज़िंदा रहेगी, जब तक इसे बनाने वाले का आत्मा मुक्त नहीं होता।"
"शर्मा जी की आत्मा अब भी बंधी हुई है," रोहन ने कहा।
"तो हमें उसकी आत्मा को मुक्त करना होगा," माया बोली।
भाग 3: शर्मा जी का सच
तीनों फिर से जली हुई दुकान के पास गए और वहां खुदाई शुरू की। कुछ ही देर में उन्हें ज़मीन के नीचे एक पुराना, जला हुआ लकड़ी का बॉक्स मिला।
"हो सकता है इसमें कुछ जरूरी हो," आदित्य ने कहा।
उन्होंने बॉक्स खोला। अंदर एक पुरानी चाभी और एक तस्वीर थी। तस्वीर में शर्मा जी के साथ एक छोटी बच्ची थी—बिल्कुल वैसी ही लकड़ी की गुड़िया जैसी!
भाग 4: छुपा हुआ कमरा
डायरी में एक और सुराग था—"इस चाभी से वह दरवाजा खुलेगा, जहाँ सच्चाई छिपी है।"
"लेकिन कौन सा दरवाजा?" माया ने पूछा।
रोहन को याद आया कि दुकान के तहखाने में एक दरवाजा था, जिसे वे पहले नहीं खोल पाए थे।
तीनों वापस दुकान के खंडहर में गए और तहखाने में पहुंचे। चाभी से दरवाजा खोला तो अंदर एक अंधेरा कमरा था।
कमरे के बीच में एक पुराना झूला पड़ा था, और उसके ऊपर वही बच्ची की तस्वीर टंगी थी। तभी हवा तेज़ चलने लगी, और एक परछाई उभरी—शर्मा जी की आत्मा!
भाग 5: श्राप का अंत?
शर्मा जी की आत्मा काँप रही थी। "मुझे माफ़ कर दो..." उन्होंने कहा।
"आपकी आत्मा इस गुड़िया में कैद क्यों है?" माया ने पूछा।
"वर्षों पहले, मैंने अपनी बेटी को खो दिया था," शर्मा जी बोले। "उसकी याद में मैंने यह लकड़ी की गुड़िया बनाई। लेकिन इस पर एक श्राप लग गया—अब यह आत्माओं को कैद करने लगी। मेरी आत्मा भी इसमें फँस गई।"
"तो इसे खत्म कैसे करें?" रोहन ने पूछा।
"गुड़िया को आग में जलाना बेकार है," शर्मा जी ने कहा। "लेकिन अगर कोई इसे प्यार से अपना ले, तो श्राप टूट सकता है।"
भाग 6: आखिरी फैसला
तीनों दोस्त चौंक गए। कौन इस डरावनी गुड़िया को अपना सकता था?
माया ने धीरे-धीरे गुड़िया को उठाया और कहा, "मैं इसे अपनाती हूँ, लेकिन सिर्फ एक खिलौने की तरह। अब यह किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएगी।"
गुड़िया की आँखों की रोशनी बुझ गई। हवा थम गई। शर्मा जी की आत्मा मुस्कुराई और धीरे-धीरे गायब हो गई।
भाग 7: क्या सच में सब खत्म हुआ?
अब सब कुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन जब वे बाहर निकले, तो माया के हाथ में गुड़िया ने हल्का सा हिलना शुरू कर दिया।
क्या सच में श्राप खत्म हुआ था? या यह सिर्फ एक नया अध्याय था?
(समाप्त... या शायद नहीं?) आगे पढ़े
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें