भाग 6: श्राप फिर जाग उठा
भाग 1: मंदिर में छुपा रहस्य
माया, आदित्य और रोहन यह सोचकर लौट आए थे कि अब सब ठीक हो गया। लेकिन मंदिर की ज़मीन के नीचे कुछ और ही चल रहा था।
रात के अंधेरे में, जब कोई वहाँ नहीं था, मिट्टी के नीचे से धीरे-धीरे गुड़िया की लकड़ी की उंगलियाँ बाहर आने लगीं। अचानक, मंदिर की पुरानी घंटी बिना किसी हवा के खुद-ब-खुद बज उठी।
वहाँ से गुजर रहे एक पुजारी ने यह सब देखा। उनके चेहरे पर डर उतर आया।
"यह श्राप अभी खत्म नहीं हुआ…" उन्होंने बुदबुदाया।
भाग 2: अजीब घटनाएँ फिर शुरू
अगले दिन, माया को एक अजीब सपना आया।
सपने में वह उसी जंगल में थी, लेकिन वहाँ हर जगह अंधेरा था। उसके सामने एक छोटी बच्ची खड़ी थी—वही लड़की, जिसकी आत्मा गुड़िया में कैद थी!
"तुमने मुझे यहाँ छोड़ दिया," बच्ची ने धीरे-धीरे कहा।
"नहीं, हमने तो तुम्हें मुक्ति दी थी!" माया ने घबराकर जवाब दिया।
बच्ची की आँखें अचानक काली हो गईं, और उसकी आवाज़ गूँजने लगी—
"तुमने सिर्फ गुड़िया को यहाँ छोड़ा… लेकिन मैं अब भी ज़िंदा हूँ!"
माया की चीख सुनकर उसकी माँ ने उसे जगाया। वह पसीने से तर थी।
"यह सपना था... या हकीकत?"
भाग 3: मंदिर से बुलावा
सुबह आदित्य और रोहन उसके घर आए।
"क्या तुम्हें भी अजीब सपने आ रहे हैं?" माया ने पूछा।
दोनों ने सिर हिलाया।
"हमें वापस मंदिर जाना होगा," आदित्य ने कहा।
जब वे वहाँ पहुँचे, तो पुजारी पहले से उनका इंतज़ार कर रहे थे।
"मैं जानता था कि तुम लोग आओगे," पुजारी ने कहा। "तुमने श्राप खत्म नहीं किया, बस इसे सुला दिया।"
भाग 4: श्राप को पूरी तरह खत्म करने का तरीका
पुजारी उन्हें मंदिर के अंदर ले गए। वहाँ एक पुराना ग्रंथ रखा था।
"इस गुड़िया की आत्मा को मुक्त करने का एक ही तरीका है," पुजारी बोले। "तुम्हें इसे वहाँ ले जाना होगा, जहाँ इसकी आत्मा की मौत हुई थी।"
"लेकिन हम नहीं जानते कि वह जगह कहाँ है!" माया बोली।
पुजारी ने गुड़िया की राख से भरी एक छोटी शीशी निकाली और मंत्र पढ़ने लगे। अचानक, राख हवा में उड़ने लगी और मंदिर की दीवार पर एक नक्शा उभर आया।
नक्शे में एक पुरानी हवेली दिखाई दे रही थी—शर्मा जी की पुरानी कोठी!
भाग 5: आखिरी सफर
तीनों दोस्त पुजारी के साथ उस पुरानी हवेली की ओर बढ़े। यह जगह अब वीरान हो चुकी थी।
जैसे ही वे अंदर गए, हवेली के दरवाजे अपने आप बंद हो गए। अंदर का माहौल भयानक था—टूटी-फूटी दीवारें, जाले, और कहीं-कहीं पुराने खिलौने बिखरे पड़े थे।
अचानक, एक खिलौने ने खुद-ब-खुद हिलना शुरू कर दिया।
"तुम वापस आ गए…"
यह वही लड़की की आत्मा थी!
"हम तुम्हें मुक्त करने आए हैं," आदित्य ने कहा।
"लेकिन मैं नहीं जाना चाहती," बच्ची की आत्मा हंसी। "अब तुम मेरे साथ रहोगे!"
भाग 6: आत्मा का गुस्सा
अचानक, हवेली हिलने लगी। खिलौने हवा में उड़ने लगे।
पुजारी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया, लेकिन आत्मा ज़ोर से चिल्लाई।
"मुझे यहाँ से कोई नहीं हटा सकता!"
अचानक, माया का शरीर काँपने लगा।
"यह… यह मेरे अंदर आ रही है!" माया ने दर्द से चीखते हुए कहा।
"नहीं, हम तुम्हें ऐसा नहीं करने देंगे!" रोहन चिल्लाया।
भाग 7: आत्मा की मुक्ति?
आदित्य ने जल्दी से पुजारी द्वारा दी गई राख निकाली और माया पर छिड़क दी।
आत्मा ज़ोर से चीखने लगी। हवेली की खिड़कियाँ टूटने लगीं।
"अब तुम्हारी मुक्ति का समय आ गया है," पुजारी ने कहा और आखिरी मंत्र पढ़ा।
आत्मा ने एक आखिरी चीख मारी और अचानक… सब कुछ शांत हो गया।
भाग 8: सच में सब खत्म हुआ?
माया अब ठीक थी। हवेली अब भी खड़ी थी, लेकिन अब वहाँ कोई भूतिया एहसास नहीं था।
"अब सब खत्म हो गया," रोहन ने राहत की सांस ली।
लेकिन जैसे ही वे बाहर निकले, हवेली के एक कोने में वही लकड़ी की गुड़िया
राख से उभरने लगी…
क्या यह श्राप सच में खत्म हुआ? या यह सिर्फ एक नई शुरुआत थी?
(समाप्त… या फिर से?) कहानी अभी बाकी हैं
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