भाग 1: फिर से अजीब घटनाएँ
गुड़िया अब माया के पास थी। वह दिखने में एक आम लकड़ी की गुड़िया जैसी ही थी, मगर उसके अंदर का रहस्य माया को बेचैन कर रहा था। उसने उसे अपने कमरे में एक अलमारी में रख दिया, यह सोचकर कि अब सब कुछ ठीक है।
लेकिन उसी रात...
माया की नींद अचानक खुली। कमरे में हल्की सरसराहट थी, जैसे कोई धीमे-धीमे चल रहा हो। उसने करवट ली और अलमारी की तरफ देखा—गुड़िया अब वहाँ नहीं थी!
"नहीं... यह कैसे हो सकता है?" माया ने खुद से कहा।
तभी उसने अपने बिस्तर के किनारे हल्की हंसी सुनी। गुड़िया उसके पैरों के पास बैठी थी, उसी डरावनी मुस्कान के साथ!
भाग 2: एक नई आत्मा का खेल
अगले दिन, माया ने आदित्य और रोहन को बुलाया।
"गुड़िया अब भी खुद-ब-खुद हिल रही है," माया ने कहा।
आदित्य ने गंभीर स्वर में कहा, "शायद शर्मा जी की आत्मा मुक्त हो गई, लेकिन यह गुड़िया अब किसी और आत्मा का घर बन चुकी है!"
रोहन ने डायरी के पन्ने फिर से देखे। आखिरी पृष्ठ पर अब एक नया वाक्य उभर आया था—
"एक आत्मा गई, पर दूसरी आ गई। गुड़िया को अपनाने वाला ही इसका अगला शिकार बनेगा।"
भाग 3: माया पर मंडराता खतरा
"मतलब अब श्राप माया पर आ गया है!" रोहन चिल्लाया।
माया सहम गई। वह महसूस कर सकती थी कि गुड़िया से कोई अजीब ताकत निकल रही थी।
"हमें इसे रोकना होगा," आदित्य ने कहा। "लेकिन कैसे?"
डायरी के पिछले कुछ पन्नों में लिखा था कि अगर कोई गुड़िया को पूरी तरह से अपना ले, तो वह आत्मा का हिस्सा बन जाता है।
"अगर माया इसे और ज्यादा अपने पास रखेगी, तो यह उसे अपने वश में कर लेगी," रोहन ने कहा।
भाग 4: अंतिम विदाई
अब एक ही तरीका बचा था—गुड़िया को वहीं छोड़ आना, जहाँ से यह आई थी।
रात के अंधेरे में, तीनों दोस्त उसी जंगल में वापस गए, जहाँ उन्होंने इसे पहले दफनाया था। जैसे ही उन्होंने गुड़िया को जमीन में रखने की कोशिश की, अचानक चारों ओर हवाएँ तेज़ चलने लगीं।
पेड़ों के बीच से एक काली परछाईं निकली। यह एक लड़की की आत्मा थी—वही बच्ची, जिसकी तस्वीर शर्मा जी के पास थी!
"यह मेरी गुड़िया है!" आत्मा चिल्लाई।
भाग 5: सच्चाई का खुलासा
"क्या यह बच्ची ही गुड़िया के अंदर फंसी आत्मा है?" माया ने पूछा।
आत्मा ने सिर हिलाया। "मुझे इस खिलौने में कैद कर दिया गया था। अब मैं बाहर नहीं आ सकती।"
"तो हम तुम्हारी मदद कैसे करें?" रोहन ने पूछा।
"मुझे इसे पूरी तरह छोड़ना होगा... लेकिन मैं अकेले नहीं जाना चाहती," आत्मा ने कहा। वह धीरे-धीरे माया की ओर बढ़ी।
"नहीं!" आदित्य ने तेजी से गुड़िया को उठाया और उसे आग में फेंक दिया।
भाग 6: श्राप का अंतिम अंत?
जैसे ही गुड़िया जलने लगी, आत्मा चीख उठी। हवाएँ और तेज़ हो गईं, और जंगल हिलने लगा।
कुछ ही मिनटों में सब कुछ शांत हो गया। आत्मा गायब हो गई।
गुड़िया की राख धीरे-धीरे हवा में उड़ गई।
भाग 7: सच में सब खत्म हो गया?
अब सब कुछ शांत था। माया, आदित्य और रोहन ने राहत की सांस ली।
"अब सच में सब खत्म हो गया," माया ने कहा।
लेकिन जैसे ही वे जंगल से बाहर निकले, आदित्य को कुछ महसूस हुआ—उसकी जेब में कुछ भारी सा था। उसने हाथ डाला और बाहर निकाला...
वही लकड़ी की गुड़िया, बिना जली हुई, मुस्कुराते हुए!
(समाप्त... या एक और अध्याय बाकी है?) देखते रहिए
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