भाग 1: गुड़िया फिर लौट आई
आदित्य के हाथ में वही लकड़ी की गुड़िया थी, जो उन्होंने जलते हुए अपनी आँखों से देखी थी। लेकिन यह अब भी सही-सलामत थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
"नहीं... यह कैसे हो सकता है?" रोहन ने चौंककर कहा।
माया धीरे-धीरे पीछे हटने लगी। "हमने इसे जला दिया था! यह यहाँ कैसे आई?"
गुड़िया की आँखें हल्का-सा चमकीं और एक धीमी, डरावनी हंसी गूँजी।
"तुम लोग मुझसे कभी छुटकारा नहीं पा सकते..."
भाग 2: श्राप का असली राज़
अब साफ़ था कि गुड़िया सिर्फ एक खिलौना नहीं थी, बल्कि एक आत्माओं का जाल थी। जितनी बार वे इसे नष्ट करने की कोशिश करते, यह फिर लौट आती।
आदित्य ने जल्दी से डायरी निकाली और आखिरी पन्नों को ध्यान से पढ़ने लगा।
एक नया संदेश उभर आया—
"यह कोई आम श्राप नहीं है। यह एक आत्माओं का चक्र है। जब तक यह गुड़िया किसी और को नहीं मिलती, यह अपने पिछले मालिक को नहीं छोड़ती।"
भाग 3: आखिरी फैसला
"तो इसका मतलब..." माया ने धीरे से कहा, "हमें इसे किसी और को देना होगा?"
"पर ऐसा करना गलत होगा," रोहन बोला। "अगर हमने इसे किसी और को दे दिया, तो वह भी हमारी तरह इस श्राप में फँस जाएगा!"
"तो हमें एक और तरीका खोजना होगा," आदित्य ने कहा।
भाग 4: गुड़िया का आखिरी घर
डायरी के पिछले हिस्से में एक और पुरानी कहानी थी।
"यह गुड़िया एक प्राचीन मंदिर के पास एक पेड़ के नीचे बनी थी। इसे वहीं लौटाने से ही इसका चक्र टूट सकता है।"
"हमें इसे वहीं ले जाना होगा," आदित्य ने कहा।
भाग 5: आखिरी सफर
अगली रात, तीनों दोस्त गुड़िया को लेकर उस मंदिर की ओर निकले। यह मंदिर शहर से काफी दूर, घने जंगल के बीच स्थित था।
जैसे-जैसे वे पास पहुँच रहे थे, हवा भारी होती जा रही थी। पेड़ अजीब तरह से हिल रहे थे, और चारों ओर अंधेरा गहराता जा रहा था।
आखिरकार, वे मंदिर के पास पहुँचे। वहाँ एक पुराना, सूखा पेड़ था—ठीक वैसा ही जैसा डायरी में बताया गया था।
भाग 6: श्राप का अंत?
"अब इसे यहाँ दफना देते हैं," रोहन ने कहा और जल्दी से ज़मीन खोदने लगा।
लेकिन जैसे ही उन्होंने गुड़िया को गड्ढे में रखा, वह अचानक हवा में उठ गई।
"नहीं! मैं यहाँ नहीं रहूंगी!"
चारों ओर हवाएँ तेज़ हो गईं, और अचानक, गुड़िया का आकार बदलने लगा। वह एक काली छाया में बदल गई और हवा में घूमने लगी।
"पीछे हटो!" आदित्य चिल्लाया।
अचानक, मंदिर की घंटी जोर से बजने लगी। गुड़िया चीखने लगी, और धीरे-धीरे उसकी छाया पेड़ के अंदर समाने लगी।
कुछ ही मिनटों में, सब कुछ शांत हो गया।
भाग 7: सच में अंत?
गुड़िया अब गायब हो चुकी थी।
माया ने धीरे से कहा, "क्या... यह सच में खत्म हो गया?"
आदित्य ने चारों ओर देखा। जंगल अब सामान्य लग रहा था। हवा भी हल्की हो गई थी।
"हाँ," रोहन ने गहरी सांस लेते हुए कहा। "अब यह खत्म हो गया।"
तीनों ने एक-दूसरे को देखा और मंदिर की तरफ सिर झुका लिया।
वे चुपचाप वहाँ से निकल गए, यह सोचकर कि उन्होंने श्राप को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है।
लेकिन जैसे ही वे जंगल से बाहर निकले, मंदिर के पास ज़मीन में कुछ हलचल हुई।
सूखी मिट्टी में
से एक छोटी लकड़ी की उंगली बाहर आई...
(समाप्त... या शायद फिर से एक नई शुरुआत?)
भाग 6 अभी बाकी हैं
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