पिछले एपिसोड में:
अर्णव, विराट और रिया ने मौत के सौदे को ठुकराकर खुद को बचा लिया। जब उन्होंने शहर की शर्तें मानने से इनकार किया, तो अचानक सब कुछ बदल गया—वे जंगल में पहुँच गए, जहाँ से उनकी यात्रा शुरू हुई थी।
लेकिन क्या यह सच में अंत था? या फिर कोई अनदेखी ताकत अभी भी उनके पीछे थी?
अब, यह कहानी अपने अंतिम मोड़ पर है—एक ऐसा मोड़, जो समय के साथ अमर हो जाएगा।
अध्याय 1: लौटना, लेकिन क्या सच में?
अर्णव, विराट और रिया शहर से बाहर निकल चुके थे। वे अब अपने-अपने जीवन में लौटने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कुछ भी पहले जैसा नहीं था।
अर्णव: पत्रकारिता में लौट आया, लेकिन हर कहानी में उसे उस शहर की झलक दिखती।
विराट: पुलिस की वर्दी पहनकर अपराधियों से लड़ रहा था, लेकिन हर बार उसे लगता कि कोई छाया उसे देख रही है।
रिया: अपने लैब में शोध कर रही थी, लेकिन उसके सारे तर्क उस रहस्यमयी अनुभव के सामने फीके पड़ गए थे।
समय बीत रहा था, लेकिन वे अब भी शहर के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए थे।
फिर, एक दिन...
अध्याय 2: वह कॉल
एक रात, अर्णव अपने ऑफिस में बैठा था। तभी उसका फोन बजा।
"हैलो?"
लाइन के दूसरी तरफ एक धीमी, अजीब-सी आवाज़ थी। "तुम लौट आए... लेकिन क्या तुम सच में बचे हो?"
अर्णव का खून जम गया। "तुम कौन हो?"
कोई जवाब नहीं। सिर्फ़ एक हल्की हँसी, जो अंधेरे में गूँज रही थी।
फिर अचानक—फोन कट गया।
अर्णव हड़बड़ाकर उठा। उसके कंप्यूटर स्क्रीन पर अचानक एक तस्वीर उभर आई—
वह शहर।
लेकिन... इसमें कुछ अलग था।
इस बार, तस्वीर में विराट और रिया भी खड़े थे।
अध्याय 3: असली खेल अब शुरू होता है
अर्णव ने तुरंत विराट और रिया को फोन किया।
"तुम्हें भी कुछ अजीब लग रहा है?"
"हाँ," विराट की आवाज़ में घबराहट थी। "मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई हर जगह मेरा पीछा कर रहा है। परछाइयाँ... आवाज़ें... ऐसा लग रहा है जैसे मैं अभी भी वहाँ हूँ।"
रिया ने धीरे से कहा, "हमने शहर को छोड़ा नहीं... शहर हमारे साथ आ गया है।"
तीनों के रोंगटे खड़े हो गए।
"मतलब?" अर्णव ने पूछा।
रिया ने गहरी सांस ली। "हमने सोचा था कि हम बच गए, लेकिन सच यह है कि हम अभी भी खेल का हिस्सा हैं।"
अध्याय 4: अंतिम पहेली
तीनों एक बार फिर मिले। उन्होंने अपने अनुभवों की तुलना की।
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अर्णव को फोन कॉल्स आ रहे थे।
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विराट को अजीब परछाइयाँ दिख रही थीं।
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रिया के सारे वैज्ञानिक उपकरण बार-बार शहर की लोकेशन दिखा रहे थे।
"तो क्या हमें वापस जाना होगा?" विराट ने कहा।
रिया ने धीरे से सिर हिलाया। "शायद यह कभी खत्म ही नहीं हुआ।"
"लेकिन हम वहाँ जाकर क्या करेंगे?" अर्णव ने सवाल किया।
"हमें इसका असली रहस्य पता लगाना होगा," रिया ने कहा। "हम अब सिर्फ़ पीड़ित नहीं हैं। हमें खिलाड़ी बनना होगा।"
अध्याय 5: लौटना या मिट जाना
तीनों ने फैसला किया—उन्हें वापस जाना होगा।
वे उसी रास्ते से जंगल की ओर बढ़े, जहाँ से यह सब शुरू हुआ था।
लेकिन इस बार, कुछ अलग था।
जब वे उस जगह पहुँचे जहाँ शहर पहले था—वहाँ सिर्फ़ खाली ज़मीन थी।
"यह कहाँ गया?" विराट ने हैरानी से कहा।
"यह अब हमारे अंदर है," अर्णव ने धीरे से कहा।
रिया ने अपनी घड़ी देखी। यह फिर से उलटी दिशा में चल रही थी।
"हम अभी भी उस शहर में हैं," उसने फुसफुसाया।
अंतिम मोड़: अमर सत्य
वह शहर कभी कहीं नहीं गया था। वह शहर समय, स्थान और चेतना का खेल था।
वे कभी नहीं बचे थे।
वे कभी बाहर निकले ही नहीं थे।
वो शहर अब उनकी हकीकत था।
कहानी का सबसे भयानक सच यही था—शहर एक जगह नहीं था। वह एक सोच थी, एक डर था, एक दहशत थी, जो कभी खत्म नहीं हो सकती थी।
और वे अब इसके हमेशा के लिए हिस्से बन चुके थे।
अंत (या शायद… नहीं?)
"कुछ डर कभी नहीं मरते। कुछ कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं। और कुछ रहस्य… हमेशा हमारे साथ रहते हैं।"
क्या यह सच में अंत है?
अर्णव, विराट और रिया को एहसास हो चुका था—वे कभी इस शहर से बाहर निकले ही नहीं थे।
पर सवाल यह था—क्या वे अब भी जीवित थे?
अध्याय 6: दूसरा खेल शुरू
रिया ने धीरे से कहा, "अगर हम सच में फँसे हुए हैं, तो हमें खेल के नियम समझने होंगे।"
"क्या इसका कोई अंत है?" अर्णव ने सवाल किया।
"या शायद... यह सिर्फ़ एक नई शुरुआत है," विराट ने धीरे से कहा।
अचानक, हवा में एक नई सरसराहट हुई।
"स्वागत है, खिलाड़ियों। अगला स्तर शुरू होने वाला है।"
क्या आप तैयार हैं अगले खेल के लिए?
(शायद यह सच में अंत नहीं था........
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