शापित शहर – एपिसोड 4: मौत का सौदा
पिछले एपिसोड में:
अर्णव, विराट और रिया ने इस रहस्यमयी शहर की सबसे भयानक सच्चाई का सामना किया—
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अर्णव को अपनी सबसे कीमती याद छोड़नी थी।
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विराट को अपनी पूरी पहचान मिटानी थी।
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रिया को अपने वैज्ञानिक विश्वास को तोड़ना था।
लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वे इस शहर के जाल में नहीं फँसेंगे। अब सवाल यह था—क्या वे सच में इसे मात दे सकते हैं?
अध्याय 1: सौदे की शर्तें
चारों ओर अंधकार घना होता जा रहा था। हवा में एक सरसराहट गूँज रही थी, मानो खुद यह शहर उनसे बात कर रहा हो।
"अगर तुमने गलत फैसला लिया, तो तुम्हें यहाँ हमेशा रहना होगा..."
अचानक, उनके सामने एक दरवाजा प्रकट हुआ। यह दरवाजा किसी पुरानी हवेली की तरह दिखता था—भारी लकड़ी का, जिस पर अजीब-सी आकृतियाँ उकेरी हुई थीं।
"हमें अंदर जाना होगा," अर्णव ने कहा।
विराट ने अपने चारों ओर देखा। "कोई और चारा भी नहीं है। यह जगह हमारी परीक्षा ले रही है।"
तीनों ने एक-दूसरे को देखा और दरवाजे को धक्का दिया।
दरवाजा चरमराता हुआ खुला, और वे एक विशाल हॉल में पहुँच गए। हॉल के बीचोंबीच एक पुरानी लकड़ी की मेज़ थी, और उसके चारों ओर तीन कुर्सियाँ।
"बैठो," एक ठंडी, अजनबी आवाज़ गूँजी।
तीनों ठिठक गए।
मेज़ के दूसरी तरफ एक काली आकृति बैठी थी। इसका चेहरा अस्पष्ट था, आँखें सिर्फ़ गहरी परछाइयाँ थीं।
"तुम्हें इस शहर से बाहर जाना है?" आकृति ने पूछा।
"हाँ," रिया ने हिम्मत करके कहा।
"तो सौदा करो।"
"कैसा सौदा?" अर्णव ने पूछा।
आकृति हँसी। उसकी हँसी खोखली थी, जैसे कई आत्माएँ एक साथ रो रही हों।
"इस शहर से बाहर जाने के लिए तुम्हें कुछ देना होगा। जीवन के बदले जीवन। यादों के बदले यादें। अस्तित्व के बदले अस्तित्व।"
अध्याय 2: बलिदान का खेल
"मतलब?" विराट ने तीखे स्वर में पूछा।
आकृति धीरे से बोली, "तुम तीनों यहाँ से बाहर जा सकते हो, लेकिन केवल अगर तुम किसी और को यहाँ छोड़ दो।"
तीनों के दिलों की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"किसी और को?" रिया ने धीरे से पूछा।
"हाँ। एक आत्मा जो यहाँ फँसी हो। अगर तुम उसे यहाँ छोड़ दो, तो तुम्हें जाने की इजाज़त मिल जाएगी।"
अर्णव ने सोचा। "लेकिन यहाँ कौन फँसा हुआ है?"
तभी हॉल के कोने में हलचल हुई। एक परछाई वहाँ उभरने लगी—धीरे-धीरे एक इंसान का आकार लेते हुए।
यह वही बूढ़ा आदमी था, जिससे अर्णव ने पहले मुलाकात की थी।
"मुझे छोड़ दो," बूढ़े ने धीमे स्वर में कहा। "मुझे जाने दो, और तुम बच सकते हो।"
तीनों चौंक गए।
रिया ने फुसफुसाया, "अगर हम इसे छोड़ दें, तो क्या हम बच सकते हैं?"
"शायद," अर्णव ने कहा। "लेकिन क्या यह सही होगा?"
विराट ने अपने दाँत भींच लिए। "अगर यह सचमुच कोई आत्मा है, तो क्या हमें इसके जीवन के बदले अपनी जान बचानी चाहिए?"
परछाई ने गहरी आवाज़ में कहा, "चुनाव तुम्हारा है। या तो इसे छोड़ो... या खुद हमेशा के लिए यहीं रहो।"
अध्याय 3: घड़ी की उल्टी चाल
तीनों के पास वक्त बहुत कम था। उनकी घड़ियाँ उलटी चल रही थीं—हर सेकंड उन्हें अंत के करीब ले जा रहा था।
रिया ने बूढ़े की तरफ देखा। "तुम कौन हो?"
बूढ़े ने हँसते हुए जवाब दिया, "मैं भी कभी तुम्हारी तरह था... यहाँ एक रहस्य खोजने आया था। लेकिन मैंने गलत फैसला लिया और इस शहर का हिस्सा बन गया। अब मेरे पास कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं।"
"अगर हम तुम्हें छोड़ दें, तो तुम हमेशा के लिए मर जाओगे?" अर्णव ने पूछा।
बूढ़े की आँखों में गहरा अंधकार था। "शायद।"
अध्याय 4: कौन रहेगा, कौन जाएगा?
तीनों के पास दो ही रास्ते थे—
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बूढ़े आदमी को शहर में छोड़कर खुद को बचा लेना।
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इस शापित खेल को नकार देना और किसी और रास्ते की तलाश करना।
"अगर यह सचमुच एक सौदा है, तो हमें यह खेल खेलना ही नहीं चाहिए," रिया ने कहा।
"लेकिन अगर कोई और रास्ता न हुआ तो?" अर्णव ने चिंता जताई।
विराट ने गहरी सांस ली। "मुझे नहीं लगता कि यह शहर हमें कभी छोड़ने देगा। लेकिन मुझे यह भी नहीं लगता कि यह सौदा हमारा इकलौता रास्ता है।"
तीनों ने परछाई की तरफ देखा।
"हम यह सौदा नहीं करते," अर्णव ने दृढ़ता से कहा।
परछाई अचानक गुस्से में आ गई। हॉल में ज़ोरदार आवाज़ें गूँजने लगीं।
"तो फिर तुम हमेशा के लिए यहाँ रहोगे!"
हवा तूफान की तरह घूमने लगी। ज़मीन हिलने लगी।
फिर...
सबकुछ अचानक शांत हो गया।
अध्याय 5: नई सच्चाई
जब वे अपनी आँखें खोलते हैं, तो वे अब हॉल में नहीं होते।
वे उसी जंगल में खड़े होते हैं, जहाँ से उन्होंने इस शहर की यात्रा शुरू की थी।
"ये... हम बाहर आ गए?" रिया ने अविश्वास से कहा।
अर्णव ने अपनी घड़ी देखी। घड़ी सामान्य रूप से चल रही थी—समय अब उल्टा नहीं था।
विराट ने चारों ओर देखा। "लेकिन यह कैसे हुआ?"
"शायद... हमने जो किया, वही सही था," अर्णव ने कहा। "शायद यह शहर हमें इसलिए फँसा रहा था क्योंकि हम इसकी शर्तों को मान रहे थे। जैसे ही हमने इंकार किया, इसका जादू टूट गया।"
रिया ने पेड़ों के पार देखा। शहर अब कहीं नहीं था।
"क्या यह सब सच था?" विराट ने खुद से बुदबुदाया।
अर्णव ने एक लंबी सांस ली। "सच और भ्रम के बीच की रेखा बहुत पतली होती है, दोस्त।"
अंतिम अध्याय: अमर सत्य
अर्णव, विराट और रिया वापस लौटते हैं।
वे अपने-अपने जीवन में लौट जाते हैं, लेकिन वे कभी भी उस शहर को नहीं भूल सकते।
लेकिन एक सवाल हमेशा के लिए उनके मन में रहता है—
क्या वह शहर सचमुच खत्म हो गया था? या फिर वह अभी भी किसी और शिकार की तलाश में था...?
अगला एपिसोड: "अंतिम अध्याय"
क्या यह सचमुच अंत था? या फिर वे अभी भी उस शापित शहर का हिस्सा थे
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