पिछले एपिसोड में:
अर्णव और विराट ने अंतिम द्वार पार किया और खुद को शून्य के एक अजीब संसार में पाया। वहाँ एक रहस्यमयी आकृति ने कहा कि वह असली निर्माता नहीं है—बल्कि केवल एक परछाईं है जो खेल को चलाती है।
अब, उन्हें असली निर्माता को ढूँढना होगा। लेकिन सवाल यह है—क्या असली निर्माता उनसे कहीं ज़्यादा ताकतवर है?
अध्याय 1: अनंत शून्य
चारों ओर घना अंधकार था। केवल घड़ी की धीमी टिक-टिक गूँज रही थी।
"खेल शुरू होता है।"
अचानक, ज़मीन उनके पैरों तले हिलने लगी। अंधेरे के बीच में रोशनी की एक पतली रेखा उभरी।
"वो क्या है?" विराट ने इशारा किया।
"शायद... बाहर निकलने का रास्ता," अर्णव ने कहा।
लेकिन जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, हवा में एक और आवाज़ गूँजी—
"अगर तुम उस रोशनी की ओर जाओगे, तो तुम इस खेल से हमेशा के लिए मिट जाओगे।"
अध्याय 2: असली चुनौती
"तो फिर हमें क्या करना होगा?" अर्णव ने सवाल किया।
अचानक, उनके सामने एक दर्पण प्रकट हुआ। लेकिन यह कोई साधारण दर्पण नहीं था। उसमें उनकी परछाइयाँ नहीं थीं—बल्कि कुछ और दिख रहा था।
एक विशाल कमरा, जिसमें कई लोग थे—सबके चेहरे ढके हुए।
बीच में एक कुर्सी थी, और उस पर कोई बैठा था।
"क्या यह... निर्माता है?" विराट ने धीरे से कहा।
आवाज़ फिर से गूँजी—"अगर तुम सच में असली निर्माता को पाना चाहते हो, तो तुम्हें अपने सबसे बड़े डर का सामना करना होगा।"
अध्याय 3: डर का परीक्षण
अचानक, अर्णव और विराट को महसूस हुआ कि ज़मीन उनके पैरों के नीचे खिसक रही है।
वे अचानक अलग हो गए—अलग-अलग जगहों पर।
अर्णव: उसने खुद को एक बंद कमरे में पाया। चारों तरफ शीशे लगे थे। हर शीशे में उसकी अलग-अलग छवियाँ दिख रही थीं—कुछ अजीब, कुछ डरावनी।
फिर, उनमें से एक आकृति ने कहा—"तुम सच में इस खेल से बाहर निकलना चाहते हो? लेकिन अगर मैं कहूँ कि तुम पहले से ही मर चुके हो?"
विराट: उसे एक पुरानी इमारत के अंदर फेंक दिया गया। सामने एक बोर्ड था—"यही खेल का पहला कमरा था।"
लेकिन यहाँ... बहुत सारे नाम लिखे थे।
सभी नाम उन लोगों के थे जो इस खेल में फँस चुके थे—और कभी बाहर नहीं निकल सके।
सबसे नीचे एक नाम चमक रहा था—"विराट"
अध्याय 4: सच्चाई का सामना
अर्णव ने शीशे को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी ही परछाई से लड़ रहा था।
"क्या यह सब एक भ्रम है?"
दूसरी ओर, विराट घबराहट में दीवार पर लिखे अपने नाम को घूर रहा था।
"अगर मैं पहले से ही इस खेल का हिस्सा बन चुका हूँ, तो क्या मैं इसे कभी छोड़ सकता हूँ?"
तभी, एक गहरी हँसी गूँजी—
"तुम दोनों अभी भी नियमों को समझ नहीं पाए।"
अध्याय 5: असली निर्माता का प्रकट होना
अचानक, शीशे टूट गए।
दीवारें गायब हो गईं।
अर्णव और विराट एक बार फिर एक साथ थे—और उनके सामने अब कोई खड़ा था।
एक लम्बी आकृति, जिसके चेहरे पर कोई विशेषता नहीं थी।
"मैं ही वह हूँ, जिसे तुम ढूँढ रहे हो।"
"तुम असली निर्माता हो?" अर्णव ने पूछा।
आकृति हँसी। "हाँ और नहीं।"
"क्या मतलब?" विराट ने घूरते हुए कहा।
"इस खेल को मैंने बनाया, लेकिन असली शक्ति मुझे भी नहीं पता। यह खेल अब अपने आप जीवित हो चुका है।"
"और अब... तुम भी इसका हिस्सा हो चुके हो।"
(अगला एपिसोड: क्या खेल को रोका जा सकता है?)
अर्णव और विराट ने असली निर्माता को ढूँढ लिया। लेकिन अब उन्हें पता चला कि यह खेल खुद ही एक जीवित सत्ता बन चुका है। क्या वे इसे रोक पाएँगे, या वे हमेशा के लिए इसमें खो जाएँगे?
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