पिछले एपिसोड में:
अर्णव, विराट और रिया अब इस रहस्यमयी शहर के अंदर फँस चुके थे।
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अर्णव को एक बूढ़े आदमी ने बताया कि यह शहर उसकी यादों को मिटा देगा।
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विराट बिना दरवाजे वाले एक कमरे में बंद था, जहाँ कोई अनदेखी ताकत उसके करीब आ रही थी।
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रिया के सामने एक परछाई खड़ी थी, जो विज्ञान के हर नियम को तोड़ रही थी।
अब, तीनों के लिए समय तेजी से खत्म हो रहा था। क्या वे इस शहर से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ पाएंगे, या फिर हमेशा के लिए इसका हिस्सा बन जाएंगे?
अध्याय 1: अर्णव की खोती यादें
अर्णव ने बूढ़े आदमी की आँखों में देखा। "अगर मैं यहाँ ज्यादा देर रहा, तो मैं भूल जाऊँगा कि मैं कौन हूँ?"
बूढ़े ने सिर हिलाया। "हाँ। और जैसे-जैसे तुम भूलोगे, यह शहर तुम्हें अपना बना लेगा।"
अर्णव ने घबराकर अपनी जेब में हाथ डाला और अपना फोन निकाला। लेकिन फोन की स्क्रीन पर अजीब चीज़ें हो रही थीं। स्क्रीन पर उसका ही नाम मिट रहा था।
"अर्णव शर्मा" अब "अ.... श....." बन चुका था।
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। "मुझे यहाँ से बाहर निकलना होगा!"
बूढ़े आदमी ने ठंडी आवाज़ में कहा, "अगर तुम अपनी सबसे बड़ी याद का त्याग कर सको, तो तुम बच सकते हो।"
अर्णव ने आँखें बंद कीं। उसकी सबसे बड़ी याद थी—उसका बचपन, उसकी माँ की आवाज़, जो उसे हर रात लोरी सुनाया करती थी।
अगर वह इसे छोड़ देता, तो शायद वह खुद को बचा सकता था। लेकिन क्या यह सही था?
अध्याय 2: विराट की दौड़ मौत से
विराट के चारों ओर अंधेरा घना होता जा रहा था। उसे लग रहा था कि कोई चीज़ उसके बेहद करीब आ चुकी है।
फिर अचानक, एक ठंडी हथेली उसके कंधे पर आ गई।
विराट तेजी से पलटा, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था।
फिर एक धीमी आवाज़ आई—"तुम यहाँ क्यों आए? तुम्हें नहीं आना चाहिए था।"
"कौन हो तुम?" विराट ने घबराकर पूछा।
अंधेरे से एक परछाई उभरी। यह कोई इंसान नहीं था। इसकी आँखें नहीं थीं, मुँह नहीं था—सिर्फ़ एक खाली खोल।
"तुम्हें बाहर निकलना है?" परछाई ने पूछा।
"हाँ!" विराट चिल्लाया।
परछाई हँस पड़ी। "फिर तुम्हें अपनी पहचान छोड़नी होगी। तुम पुलिस अफसर हो, है ना? अगर तुम इस शहर से बाहर जाना चाहते हो, तो तुम्हें अपनी पूरी पहचान भूलनी होगी। जब तुम इस शहर से बाहर निकलोगे, तो न कोई नाम होगा, न कोई अतीत, न कोई वजूद।"
विराट ने घूरकर देखा। "अगर मैंने अपनी पहचान छोड़ दी, तो मैं बचूंगा कैसे?"
परछाई ने धीरे से कहा, "यही तो खेल है..."
अध्याय 3: रिया का वैज्ञानिक तर्क ध्वस्त
रिया अब भी उस परछाई को देख रही थी, जो बिना किसी भौतिक शरीर के उसके सामने खड़ी थी।
"यह असंभव है..." रिया ने खुद से कहा।
परछाई हँसी। "विज्ञान के नियम यहाँ काम नहीं करते, रिया।"
"लेकिन हर चीज़ का एक तर्क होता है!"
परछाई ने कहा, "अगर तुम इस शहर से बाहर जाना चाहती हो, तो तुम्हें विज्ञान पर से विश्वास हटाना होगा। क्योंकि यहाँ जो कुछ भी होता है, वह किसी तर्क से नहीं बंधा।"
रिया ने अपनी मशीन की स्क्रीन देखी—उसकी सारी रीडिंग्स गायब हो चुकी थीं।
"तुम्हें बस मानना होगा कि कुछ चीज़ें बिना कारण होती हैं।"
रिया का दिमाग इस तर्क को मानने को तैयार नहीं था। लेकिन अगर वह नहीं मानी, तो क्या वह कभी इस शहर से बाहर निकल पाएगी?
अध्याय 4: अंतिम फैसला
अर्णव, विराट और रिया तीनों ने अब तक अपनी सबसे बड़ी सच्चाई का सामना कर लिया था।
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अर्णव को अपनी सबसे कीमती याद छोड़नी थी।
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विराट को अपनी पूरी पहचान मिटानी थी।
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रिया को अपने वैज्ञानिक विश्वास को तोड़ना था।
लेकिन वे जानते थे कि अगर उन्होंने ऐसा किया, तो शायद वे वही लोग नहीं रहेंगे, जो वे इस शहर में आने से पहले थे।
क्या वे इस बलिदान के लिए तैयार थे?
"हमें मिलकर इसका हल निकालना होगा," अर्णव ने बुदबुदाया।
विराट ने सिर हिलाया। "अगर यह शहर हमें हमारी सबसे बड़ी चीज़ को त्यागने के लिए मजबूर कर रहा है, तो शायद यही इसका जाल है।"
रिया ने सोचा और कहा, "हमें इसे मात देनी होगी। हमें यह मानने से इंकार करना होगा कि यह शहर हमसे कुछ छीन सकता है!"
अर्णव ने गहरी सांस ली। "तो क्या हम इस जाल से बच सकते हैं?"
शहर के चारों ओर अंधेरा और गहरा हो गया। हवा में सरसराहट गूँजने लगी।
शहर ने खुद ही जवाब दे दिया—"अगर तुमने गलत फैसला लिया, तो तुम्हें यहाँ हमेशा रहना होगा..."
क्या वे सही निर्णय लेंगे?
(अगले एपिसोड में जारी रहेगा...)
अगला एपिसोड: "मौत का सौदा"
अब सबसे बड़ा दांव लगेगा—जीवन या मृत्यु का। क्या वे इस शहर से बाहर निकलने में कामयाब होंगे, या फिर यह शहर हमेशा के लिए उन्हें निगल जाएगा?
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